कातिलों के शहर में जब बसेरा होगा
मुश्किलें लोगों के घरों से निकलना होगा।
खौफ के साए में जीते हैं हर वक़्त
न जाने कब मेरे घर पे हमला होगा।
रोज नए मुद्दों का परचम लेके
किस मोड़ पर कब कहां हंगामा होगा।
बुलंद हौसले हैं दंगाइयों के साथ है कोई
शहर में आग लगाने का कोई तो इशारा होगा।
खिलते हुए चमन को वीरान कर दिया
उजड़े हुए गुलिस्तां को बसाना होगा।
हक की आवाज उठाना मेरा मकसद है निशार
सारी दुनिया को सच्चाई बताना होगा।
नसीम अख्तर निशार
गोमो, धनबाद।